प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

बुधवार, 3 जनवरी 2018

हथिसुड़बा

अझुका रचना- बाल कविता
282. हथिसुड़बा

हाथी जेहन सूँढ़ ओकर छै
चुट्टी सन छै चालि ओकर
कछुआ सन ससरै छै देखू
गदहा सन छै बोल ओकर

हड़हड़ गड़गड़ खूब करै छै
गाछ-बिरिछकेँ दै छै तोड़ि
ममता मोह ने आबै ओकरा
क्षणमे दै छै खत्ता कोरि

छिट्टा भरि भरि माँटि उठाबै
बड बलशाली नया मशीन
ओ हथिसुड़बा डेरबय हमरा
सपनामे आबि तोड़बै नीन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें