प्रिय पाहुन, नव अंशु मे अपनेक हार्दिक स्वागत अछि ।

सोमवार, 10 जुलाई 2017

मैथिली लघुकथा-भार

213. भार

दुनू पक्ष आर्थिक रूपेँ कमजोर छल ।बियाहक मासे भरि बाद लड़काक बाबू आ लड़कीक बाबूमे घमासान तर्क-वितर्क शुरू भ' गेलै ।लड़काक बाबू समधिकेँ कहलनि-" सावन आबैसँ पहिने बिदागरी क' दियौन ।"
"रह' दियौ ने, एखन ओत' मोनो नै लागतै ।नव विवाह भेलैए, खेलै खेलाइक दिन छै एखन ।"
"ई त' केवल मोनक वहम छै ।मोन लागनि वा नै लागनि रहैक त' एतै ने छै ?"
"हँ से त' छैहे, मुदा सावनमे मधुश्रामनी होइ छै ।कने रमन-चमन होइ छै ।ई सब त' नैहरेमे नीक लागै छै ने ।"
"रमन-चमन करैसँ मतलब छै आकि पूजा करैसँ ? एतै पूजि लेथिन ।कोनो दिक्कत नै हेतै ।"
"यौ एखन पढ़ै छै ।ओत' जेतै त' ट्यूशन सब छूटि जेतै ।अहाँ त' बुझिते छी ने, इन्टर सबमे एक दिन ट्यूशन छुटलाक बाद आगू किछु समझ नै आबै छै ।"
"ओकर चिन्ता हमरो छै ने ।एत' कि ट्यूशन नै भेटै छै ? एतै ट्यूशन पकड़ा देबै ।"
"मुदा..."
"मुदा-तुदा किछ नै ।या त' बिदा क' दियौन आ नै जीवन भरि ओतै राखियौ ।कुटमैती आदमीक जरूरत पूरा करै लेल केने छलियै, कोनो मुँह देखै लेल नै ।"
समधिक एहि धमकीसँ लड़कीक बाबू मजबूर भ' गेलनि आ बिदागरी क' देलनि ।एक दिस नैहर, दोस्त आ पढाइ छुटि जेबाक कारणे पुतौह दुखी छलनि त' दोसर दिस मधुश्रामनीक भार दैक योग्य नै हेबाक कारणे बेइज्जत होइसँ बचि जेबाक लेल सासुरके खुशी छलनि ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें