बाल कविता -225
कनकन पानि
कनकन पानि सर्द हवा छै
सूर्य भेलनि निपत्ते रौ
कोना एखन घूर पजारब
भीजल छै जे पत्ते रौ
सीरक तरमे बैसल बैसल
मोन करै छै लुचपुच रौ
स्वीटर मोफलर लागै भारी
करै छै जुत्ता पुचपुच रौ
बाहर निकलब बंद भेल छै
लागि रहल नै नीके रौ
बिना खेलके दिन बीतै छै
भोजनो लागै फीके रौ
कोन उपाइ करी रौ मीता
निकलै सूरज भोरे पूब
सर्द हवा जाइ नानीगाँव
निकली बाहर खेली खूब
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