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मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

अति वर्जित

123. अति वर्जित

भरि भरि राति जगरना जुनि कर आँखि हेतौ तोर लाल
बाट चलिते औंघी लागतौ बनि जेतौ ई काल
मानलौं बहुते पोथी बचल बचल खूब सबाल
मुदा औंघीमे पढ़िते-पढ़िते बनि जेबें निरमाल
चान्द फेकेतौ गोरथारीमे सिरमामे परकाल
अति सब ठाँ वर्जित बौआ अति बनै छै काल
समय बाँटि ले पढ़ै-सुतैमे फटाफट बनतौ सबाल

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