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शनिवार, 20 अप्रैल 2013

ताड़ आ ताड़कुल


गगन छुबैत जे गाछ ठाढ़ अछि
हवा संग एसगर रचै नव धुन
गमकैत ताड़ी भरि घैल पीबू
भरि पेट खाउ मीठगर तारकुल

छाहरि दुर्लभ ई तँ बूझल अछि
मुदा पातसँ बनै बियनि अदभुद
गोइठा पारू एकर कारी तनपर
छेब-चाँछि पसिबा आनलक तारकुल

चलू शप्पत खाइ जे बनि ताड़ सन
रहि दूर निज माटिसँ जुड़ल रहब
निज स्वभाव, गुणसँ गमगाबैत समाजकें
बाजब मधुर जेना रसगर तारकुल

अमित मिश्र

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