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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

राति दिवालीक

बाल कविता-45
राति दिवालीक

कारी-कारी राति डेराओन
मुदा चमकि गेल दीप हजार
मच्छर झड़काबैत हुक्का-पाती
स्वाहा भेल कुरीतक संसार

पाड़ल अरिपन माँझ आँगन
राँगल देबाल, चौकठि, केबार
पुरना झगड़ापर पड़ल गर्दा
भेलै नव जीवनक संचार

मधुर-मिठाइ, पूजा पाठमे
लागल सभक घर-परिवार
संग चुन्नू-मुन्नू, मुन्ना-टुन्ना
लगा देलक फटक्काक पथार

राति दिवालीक सब दिन आबै
सब दिन सजै मस्तीक बजार
सब दिन आबथि लक्ष्मी मैया
सब दिन राखब खोलि केबार

अमित मिश्र

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