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सोमवार, 18 मार्च 2013

मोछ

कथा -- * मोछ *



मिथिलाक लोक जहिना दही-चुड़ा  माछ .मखान आ पान कए प्रेमि होइ छथि ओहिना गप्प-सड़क्का कए सेहो बड़का प्रेमि होइ छथि । जँ दु-चारि टा संगी एकठाम जुटला आ गप्प नै भेल ,एहन भS नै सकै यै । देश-विदेश , घर-दुआरि , क'र-कुटमैती , वियाह-द्विरागमन , फिल्म-राजनीति बहुतो रास शिर्षक छै ,गप्प करबाक लेल ।गाम-घर मे ताशक चारि-चारि टा चौकरी एक्के ठाम भेटत आ उहो ठाम गप्पक सुगंध भेटै छै । खुदरा मे गप्प तS हाट-बजार , ट्रेन-बस , गाछी-बिरछी ,बाध-बन आदि जगह भेटबे करै छै मुदा थौक मे गप्पक सरोबर बहै छै ,चाहक दोकान पर ।

                                                                              हम्मर गामक चौक पर एक्केटा चाहक दोकान छै , सुरेन्द्र  कए चाहक दोकान । साँझ कS गामक सब बड़-बुजुर्ग ओही दोकान पर जुटै छथि आ चाहक चुस्की संग फुटै छै गप्पक फटक्का । हम्मर एकटा फरीक मे कक्का छथि ,मधु कक्का , जेहन नाम तेहने काम , मुहँ सँ सदिखन मधु चुबैए छेन । मधु कक्का कए गप्प बड़ नीक होइ छै ,हिनकर गप्प सुनबाक लेल साँझ कS चाहक दोकान पर भीड़ जुटल रहै छै । चाह संग बिस्कुट ,समौसा , लिट्टी , जीलेबी . सेहो बड़ बिकाइ छै , इएह कारण छै जे सुरेन्द्र मधु कक्का कए फ्रि मे चाह , बिस्कुट आ कहियो-कहियो जीलेबी .समौसा दS छै । आ एकर बदला मे कक्का नव-नव गप्प सुनबै छथिन। गप्प आ मधु कक्का कए महिमा अपरंपार छै जतेक बखान करब ततेक कम मुदा एहि ठाम कोनो गप्प नहि एकटा घटना बता रहल छी ।

                                                                                          एक बेर हम अपन किछु दोस्त संगे ओहि देकान पर नाश्ता करबाक लेल गेलौँ  । दोकान पर पएरो राखै कए जगह नै छलै  , किछ गेटा तीनू बेँच पर बैसल छलखिन आ जिनका जगह  नहि भेटलनि से ठार छलखिन , सबहक बीच मे ऊँचगर कुर्सी पर मधु कक्का बैसल छलखिन । हम कक्का कए देखलौँ तS जा कS गोर लागलियनि  । हमरा देख कक्का बाजलाह ," बौआ , दरभंगा सँ गाम कहिया एलहो ।"
   "कक्का काल्हि साँझ मे एलौँ " हम सामने मे ठार होइत कहलयनि ।
हमरा दिश कनेक काल देखला कए बाद कहलखिन ," बौआ , वियाह भS गेलS की ?,"
हम अकचका गेलौँ जे कक्का एहन प्रश्न किएक पुछि रहल छथि । हम मुड़ी निच्चा केने बाजलौँ ,"कक्का ,एखन तS पढ़ि रहल छी , कत्तौ नोकरी भेटत तहन ने नीक दहेज ,नीक कनियाँ आ नीक ठाम वियाह हएत , ओना अहाँ एहन प्रश्न किय पुछलियै ।"
 
" तोरा  नहि मोछ छS नहि दाढ़ी छS आ नहि टिक छS  , तS हम की बुझियै , हौ , जेकरा वियाह भेल रहै छै तकरे ने इ सब नहि रहै छै । " कक्का बड़ा शान्ती सँ बाजलाह ।

हम्मर समझ मे इ तर्क आबि नहि रहल छल । आखिर मोछ सँ वियाहक कोन संबंध , कोन प्रयोजन । लाजे हम्मर मुड़ी माटि मे धैस रहल छलै मुदा हमहूँ शहरी छौड़ा छलौँ चुप कोना रहब , तेँ हिम्मत कS  कहलौँ ," कक्का ,अहूँ गजबे बात करै छी आब वियाह सँ मोछक कोन संबंध आ टिक नै राखब तS नवका फैसन छै । "

" देखहक , देखहक भाई सब छौड़ा कोना बाजै छै ।" कक्का भीड़ दिश देखैत जोर सँ बाजलाह , " रौ , वियाह भेला कए बाद मर्द ,मर्द नै रहै छै ओ मौगी भS जाइ छै आ जमाना जानै छै जे मौगी कए मोछ , दाढ़ी आ टिक नहि होइ छै , तोरा तS सदियह ऐ मे से किछ नहि छौ  , जँ एखनो तोँ अपना कए मर्द कहै छेँ तS जरूर तोहर वियाह भS गेल छौ ।"

लोक सब हम्मर आ कक्का कए बार्तालाप सुनै छलैए आ मुस्की मारै छलैए । आइ कक्का कए नजैर पर हम चैढ़ गेल छलौँ । मोने मोने हम ओही   क्षण कए के गरियाबै छलौँ जखन ऐ देकान पर आयबाक लेल सोचने छलौँ । सब चाहक चुस्की आ हम्मर बेज्जती सँ मुड-फ्रेस कS  रहल छलैए ।
हम खिसिया कS कहलियै ,"कक्का .राम भगवान कए देखू , कृष्ण भगवान कए देखू , किनको मोछ नहि छै तS की ओ मर्द नहि छलाह ।"
" बौआ , ओ भगवान छलखिन तूँ तS मनुक्ख छेँ , जेना राम जी 14  वर्ष बन मे रहलखिन आ कृष्ण जी गीता  कए उपदेश देलखिन , एहन एक्को टा काज तूँ कS सकै छें? जँ भगवानक देखसी करै छेँ तS भगवान जेकाँ कर्म कS कए देखा , तहन फ्रि भS जेबेँ मोछ राखै सँ ।"

                                                                                     कक्का कए तर्कक  सामने हम कमजोर भS गेल छलौँ ,हमरा किछ फुरेबे नहि करै छलैए ,मुदा हमहूँ नव जमाना कए ,नव विचारधारा ,आ नव समाज मे जियै बाला प्राणी छी तS फेर एतेक जल्दी हारि कोना मानि लेब ।हम फेर कने सोचि कS कहलौँ ," आइ कए जमाना मे मुर्ख वा विद्वान सब पाइ चाहै छै , मोछ नहि , आ जँ मोछ राखब तS कोनो नामी कंपनी नोकरी नहि देतै आ जँ नोकरी नहि भेटत तS टाका नहि भेटत आ जँ टाका  नहि रहत तS भुखल  मरब , एहि कारणे कक्का मोछ राखनाइ जरूरी नहि छै ।" फेर कनेक काल ठमकी कक्का कए मूँह पर आबैत भापढ़बाक कोशिश केलौँ आ फेर सँ हम अप्पन तर्क देलौँ ," आइ फिलम मे बड़का-बड़का हिरो सब बिन मोछ कए अभिनय करै छै और एक्के दिन मे लाखक-लाख टाका कमा लै छै , जाँ मेछ राखितै तS हमरा हिसाबे ओ सड़क पर रहितै । एकटा बात और मोछ बाला छोड़ा कए कोनो आधुनिक लड़की पसंद नहि करै छै ,आब केउ मुर्खे हेतै जे मोछ राखि कS  अपन पएर पर कुल्हरि मारतै ।"
  
  हम मोने-मोने सोचै छलौँ जे ऐ बातक कोनो काट कक्का लग नहि हेएत किएक तS महगाई कए जमाना मे टाका सब  कए  चाही ।मुदा कक्क तS कक्के छलाह ओ कोना हारि जेताह ।ओ चट दS  अपन बात कहलनि ," हम मानलियौँ जट टाका सबहक प्रथम जरूरत छै मुदा फिलम मे काज करै बाला मर्द नहि होइ छै ,अरे ऊ तS  अपना संगे बाँडीगार्ड कए फौज लS कS घुमै छै ,भीड़ मे नहि आबS चाहै छै , लाड़का लड़की कए रूप धS मूँह झाँपि कS बहराइ छै , ओकरा करेजे नहि छै खुलेआम धुमै कए , जे सदिखन डर मे जियै छै , आब तूँ ही कह जे ओ मर्द छै की मौगी ।सब नवयुवक ओकर अनुकरण करै छेँ आ मोछ कटाबै छेँ ।लाज कर रौ बौआ ,लाज कर ।"
         
                                                कक्का कए बात सुनि हम फेर सँ निरूतर भS गेलौँ । हमरा लSग आब कोनो एहन ठोस तर्क नहि छल जै सँ हम निमोछिया कए जीता सकितौँ ।हमरा चुप देख कक्का बाजलाह," बौआ ,शास्त्र-पुराण मे अनेको ऋषि-मुनी लिखने छथिन जे माय-बाप कए मरला कए बादे मोछ कटाएबाक चाही ।मोछ तS मर्दक पहचान छै । पहिलुक जमाना मे मोछे सँ बुझहा जाइ छलै जे के बलगर आ के कमजोर छै ।मोछक भेराइटी होइ छलै , छोटका मोछ ,हिटलर कट मोछ , पतरका मोछ आ सब सँ नीक मोछ होइ छलै कान धरि बाला मोछ । पाकल ,कारी ,लाल , कंघी मारल, गोल-गोल औँठिया मोछ ,रौद मे चमैक कs मुँहक तेज बढ़ाबै छलै ।आब तs इ सब सपना भs गेलै । आब तS सब किछ छोट भS रहल छै ,छोट मनुष्य ,छोट गाड़ी  , छोट बर्तन ,छोट नाम जेना माँम डैड ब्रो , छोट कपड़ा , छोट टिक , आ सफाचट मोछ । जेना फैसनक कारण सब किछ छोट भS रहल छै हमरा बुझना जाइ यै मुनुक्खक ऊँचाइ बकरी जेकाँ भS जाएत । बौआ हम सब मिथिलाक छी ,मिथिलाक नाउ ,संस्कार ,संस्कृती ,इज्जत कए माटि मे नहि मिला ।विद्यापति ,उदयनाचार्य ,मंडन सन विद्वानक धरती सँ मोछ रूपि धरोहर फैसनक सागर मे नहि भसा । मोछ राख ,टिक राख , जनेऊ पहिर आ शान सँ कह हम मिथिलाक छी , हम मैथिल छी ।"

                                                                                                    हम लाजे मुड़ी निच्चा केने कहलियै," कक्का कान पकड़ै छी , आइ सँ हम मोछ नहि काटब आ अपन संगीयो सब सँ कहब मोछ नहि काटबाक लेल ,अपन संस्कृती बचाएबाक लेल ।"
    सब ताली सँ हम्मर बातक समर्थन केलक । चाहक दोकान पर सँ भीड़ छटS लागल । ।

                                                                                                  { समाप्त }



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